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Thursday, August 25, 2005

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Copied from Phoenix's blog

नज़र नज़र की बात है
खेल बदलते वक्त का है
जो कभी अश्कों के साथ बहा था
रंग आज भी लाल उस रक्त का है
पानी सा बह रहा है आज मगर
ना कोई दर्द ना कोई जज़्बात है
कसूर इन सुर्ख बून्दों का नहीं
ये तो नज़र नज़र की बात है।

चलती हुई हवाओं को
कोई आँधी कहे कोई झोंका
कोई उड् गया तूफ़ानों में
तो किसी ने तूफ़ानों को रोका
इन्हीं तूफ़ानों में फ़से थे कल तक
मगर आज सब कुछ शान्त है
आज हवा चले भी तो एहसास नहीं होता
बस नज़र नज़र की बात है।

कल कोई दिल का टुकडा था
आज ज़ख्म बन के रह गया
वो हर सपना जो कल संजोया था
आंसूओं के साथ बह गया
कल अंधेरों में भी उजाले थे
आज आठों पहर ही रात है
सूरज को कोई दोष ना देना
ये तो नज़र नज़र की बात है।

वही लौ जो रोशनी देती थी
खिडकी पे रखी बाती में
ना जाने कब वो आग बन गयी
मिटाया सब कुछ
जिसने क्रान्ति में
शमा के दो रूप देखता है वो ही
परवाना जो उसमें जलता है
नज़र नज़र की बात है सब कुछ
खेल बदल्ते वक्त का है॥
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